Scientists traced ‘alien signals' now current news
Scientists trace mystery ‘alien signals’ to distant galaxy
For the first time, scientists have successfully traced mysterious “fast radio bursts” (FRBs), which have been speculated to be signs of extraterrestrial intelligence, to a galaxy six billion light years away.
Just 17 such radio blasts have been recorded since 2007 when they were first discovered. Each one came from space and lasted a few milliseconds at the most, emitting as much energy as the Sun in about 10,000 years.
Scientists are not sure what causes these bursts. The first step in establishing their origin was to estimate the distance to the object where it originated.
Astronomer Evan Keane from the UK’s Jodrell Bank Observatory, who led the scientific team that published the new findings in the journal Nature, was able to record one of the most recent radio burst called FRB 150418 on April 18, 2015 with the help of the Parkes radio telescope in Australia. It lasted less than one millisecond, the shortest of them all.
The process of pinpointing its location was long. First Australia’s telescope located the radio afterglow in space and then a second 8.2-meter-long telescope in Hawaii, known as the Subaru Telescope, helped trace the origin of the wave to an elliptical galaxy, which is an off-spherical concentration of stars believed to be relatively old.
Some have speculated that the bursts could be a signal sent by extraterrestrial intelligence. “Nope! Sorry,” Keane said in response to this theory, as quoted by AFP.
The radio waves most likely originate from two colliding neutron stars, which at some point were orbiting each other before merging, according to Keane. Due to the composition of the galaxy, it is more likely that a collision of two dead stars caused the radio bursts, rather than the explosion of a supernova, astronomers say.
Keane is now working with his team to determine how much material the radio wave passed through before being recorded on Earth. According to the astronomer, this could answer some of the biggest scientific mysteries, such as the measurements of the cosmic microwave background.
Scientists plan to use such radio bursts in the future to create a map that could help detail the magnetic fields between various galaxies and determine what type of matter exists in space.
The discovery might also shed some light on the “missing matter question” question. Scientists believe that the universe consists of 70 percent dark energy, 25 percent undetermined dark matter, and around five percent ordinary matter or, more specifically, what planets and stars are made of.
Astronomers are currently only able to identify half of the ordinary matter, while the other half is labelled as “missing matter.”
शनि के चंद्रमा पर मौजूद हैं एलियन
Jun 6, 2010 अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नासा से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि शनि के चंद्रमा पर एलियंस मौजूद हैं .
अपने शोध के दौरान इन वैज्ञानिकों को इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि शनि ग्रह के चंद्रमा टाइटन पर जीव होने के पुख्ता प्रमाण हैं और अगर उन्हें उचित वातावरण मिले तो वे जीव पुन : अस्तित्व में आ सकते हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नासा द्वारा भेजे गये कैसिनी यान द्वारा भेजे गये आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद अध्ययन दल के प्रमुख क्रिस मैके ने कहा है कि हमें वहां हाइड्रोजन गैस के पुख्ता प्रमाण दिखाई दे रहे हैं जो कि पृथ्वी पर मौजूद आक्सीजन के समतुल्य है .
उनका कहना है कि यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि वहां पर पानी आधारित जीवन की पूरी संभावना है . अध्ययन दल से जुड़े जान जेरेस्की का कहना है कि हमें पूरा विश्वास है
अपने शोध के दौरान इन वैज्ञानिकों को इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि शनि ग्रह के चंद्रमा टाइटन पर जीव होने के पुख्ता प्रमाण हैं और अगर उन्हें उचित वातावरण मिले तो वे जीव पुन : अस्तित्व में आ सकते हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नासा द्वारा भेजे गये कैसिनी यान द्वारा भेजे गये आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद अध्ययन दल के प्रमुख क्रिस मैके ने कहा है कि हमें वहां हाइड्रोजन गैस के पुख्ता प्रमाण दिखाई दे रहे हैं जो कि पृथ्वी पर मौजूद आक्सीजन के समतुल्य है .
उनका कहना है कि यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि वहां पर पानी आधारित जीवन की पूरी संभावना है . अध्ययन दल से जुड़े जान जेरेस्की का कहना है कि हमें पूरा विश्वास है
Does Aliens exist on Saturn's moon?
इसरो का दावा एलियन के निशान मिल गए
मिल गये इसरो को एलियन के निशान वाकई: इसरो को मिल गए एलियन के निशान नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के वैज्ञानिकों को एलिय न के निशान मिले हैं। धरती से दूर आसमान में वैज्ञानिकों को जो सुराग मिले हैं , उससे वैज्ञानिक हैरत में हैं। इसरो की ताजा रिसर्च ने ये साबित करने की कोशिश की है कि धरती के बाहर जो दुनिया है उसमें भी प्राणियों का वजू द है और ये एलियंस हो सकते हैं। ताजा रिसर्च के जरिए इसरो ने तीन बैक्टीरिया की खोज का दावा किया है।
ऐसे बैक्टीरिया जो धरती की सतह से 40 किलोमीटर ऊपर के वायुमंडल में पाए गए। ये तीनों बैक्टीरिया इस रो के भेजे गए एक बैलून ने खोज निकाले। ये बैक्टीरिया धरती की सतह से उस ऊंचाई पर पाए गए जहां इस तरह के अधिकतर जीवों की अल्ट्रावॉय लेट किरणों की वजह से मौत हो जाती है। लेकिन इन बैक्टीरिया के जीवित पाए जाने की वजह से अंतरिक्ष में एलियन की मौजूदगी का दावा फिर से पुख्ता हुआ है। असल में इसरो ने कुछ बैलून आजाद छोड़ दिए। मकसद था धरती के बाहर की दुनिया का सुराग पाना।
ये बैलून हैदराबाद की नेशनल बैलून फैसिलिटी से भेजे गए। धरती से 20 से 40 किलोमीटर ऊपर ये बैलून गोता खाते रहे। बाद में इन बैलून के जमा किए गए नमूनों को टेस्ट के लिए भेजा गया। हैदराबाद के मॉलिक्युलर बायोलॉजी सेंटर में टेस्ट करने पर इन नमूनों में तीन तरह के बैक्टीरिया पाए गए और इनमें जीवन के निशान मिले जिनकी बाद में पुणे स्थित नेशनल सेंटर फार सेल साइंस ने पुष्टि की। यहीं से वैज्ञानिकों का दिमा ग ठनका। आखिर धरती से ऊपर बैक्टीरिया का वजूद कैसे संभव है ?
अल्ट्रावॉयलट रे की वजह से इतनी ऊंचाई पर बैक्टीरिया का होना तो नामुमकिन माना जाता है। फिर कहां से आ गए यहां बैक्टीरिया। इन्हीं सवालों ने एलियन के वजूद को फिर से दुनिया के सामने ला खड़ा किया। हालांकि इसरो ने इन तीनों बैक्टीरिया का नामकरण कर दिया है। पहले बैक्टीरिया का नाम इसरो के नाम पर बैसीलस इसरोनेसिस रखा गया है। जबकि दूसरे का नाम रखा गया आर्यभट्ट के नाम पर बैसीलस आर्यभट्ट। तीसरे बैक्टीरिया को जेनिफ र हॉएली के नाम से जाना जाएगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल फिर वही है कि ये बैक्टीरिया इतनी ऊंचाई पर पहुंचे कैसे। इसके जवाब में दो थ्योरी सामने आ रही हैं। पहला ये कि धरती के बाहर भी जीवन है और हो सकता है कि ये एलियन हों।
ऐसे बैक्टीरिया जो धरती की सतह से 40 किलोमीटर ऊपर के वायुमंडल में पाए गए। ये तीनों बैक्टीरिया इस रो के भेजे गए एक बैलून ने खोज निकाले। ये बैक्टीरिया धरती की सतह से उस ऊंचाई पर पाए गए जहां इस तरह के अधिकतर जीवों की अल्ट्रावॉय लेट किरणों की वजह से मौत हो जाती है। लेकिन इन बैक्टीरिया के जीवित पाए जाने की वजह से अंतरिक्ष में एलियन की मौजूदगी का दावा फिर से पुख्ता हुआ है। असल में इसरो ने कुछ बैलून आजाद छोड़ दिए। मकसद था धरती के बाहर की दुनिया का सुराग पाना।
ये बैलून हैदराबाद की नेशनल बैलून फैसिलिटी से भेजे गए। धरती से 20 से 40 किलोमीटर ऊपर ये बैलून गोता खाते रहे। बाद में इन बैलून के जमा किए गए नमूनों को टेस्ट के लिए भेजा गया। हैदराबाद के मॉलिक्युलर बायोलॉजी सेंटर में टेस्ट करने पर इन नमूनों में तीन तरह के बैक्टीरिया पाए गए और इनमें जीवन के निशान मिले जिनकी बाद में पुणे स्थित नेशनल सेंटर फार सेल साइंस ने पुष्टि की। यहीं से वैज्ञानिकों का दिमा ग ठनका। आखिर धरती से ऊपर बैक्टीरिया का वजूद कैसे संभव है ?
अल्ट्रावॉयलट रे की वजह से इतनी ऊंचाई पर बैक्टीरिया का होना तो नामुमकिन माना जाता है। फिर कहां से आ गए यहां बैक्टीरिया। इन्हीं सवालों ने एलियन के वजूद को फिर से दुनिया के सामने ला खड़ा किया। हालांकि इसरो ने इन तीनों बैक्टीरिया का नामकरण कर दिया है। पहले बैक्टीरिया का नाम इसरो के नाम पर बैसीलस इसरोनेसिस रखा गया है। जबकि दूसरे का नाम रखा गया आर्यभट्ट के नाम पर बैसीलस आर्यभट्ट। तीसरे बैक्टीरिया को जेनिफ र हॉएली के नाम से जाना जाएगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल फिर वही है कि ये बैक्टीरिया इतनी ऊंचाई पर पहुंचे कैसे। इसके जवाब में दो थ्योरी सामने आ रही हैं। पहला ये कि धरती के बाहर भी जीवन है और हो सकता है कि ये एलियन हों।
Isro and aliens proof
एलियन और नर्मदा की सैर
नर्मदा की सैर करने आते थे एलियन होशंगाबाद।
नर्मदाघाटी के प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन से करीब 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के शैलाश्रयों में मिले प्राचीन शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी "एलियन" आए होंगे।
संस्था का मानना है कि आदि मानव ने इन शैलचित्रों में उड़नतश्तरी की तस्वीर भी उकेरी है। पत्थर पर दर्ज आकृति नर्मदा घाटी में नए प्रागैतिहासिक स्थलों की खोज में जुटी सिड्रा आर्कियोलाजिकल एन्वॉयरन्मेंट रिसर्च , ट्राइब वेलफेयर सोसाइटी के पुरातत्वविद् मोहम्मद वसीम खान के अनुसार ये शैलचित्र रायसेन जिले के भरतीपुर, घना के आदिवासी गांव के आसपास की पहाडियों में मिले हैं।
इनमें से एक शैलचित्र में उड़नतश्तरी (यूएफओ) का चित्र देखा जा सकता है। इसके पास ही एक आकृति दिखाई देती है, जिसका सिर एलियन जैसा है। यह आकृति खड़ी है। जैसा देखा, वैसा बनाया संस्था के अनुसार प्रागैतिहासिक मानव अपने आस-पास नजर आने वाली चीजों को ही पहाड़ों की गुफाओं, कंदराओं में पत्थरों पर उकेरते थे। ऎसे में सम्भव है कि उन्होंने एलियन और उड़नतश्तरी को देखा हो।
देखने के बाद ही उन्होंने इनके चित्र बनाए होंगे। रायसेन के पास मिले शैलचित्र आदिमानव के तत्कालीन जीवन शैली से भी मेल नहीं खाते। खान के अनुसार कुछ इसी तरह के चित्र भीम बैठका और रायसेन के फुलतरी गांव की घाटी में भी मिले हैं। सबसे बड़ा रहस्य दूसरे ग्रहों पर भी जीव होने के अनुमान के आधार पर दुनियाभर में एलियन के अस्तित्व पर शोध हो रहे हैं। विभिन्न देशों में कई बार दूसरे ग्रहों से आने वाली उड़नतश्तरी ( अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) देखे जाने के दावे किए जाते रहे हैं।
इसके अलावा, कई बार एलियन को भी देखे जाने के दावे किए जाते रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिक तौर पर अब तक एलियन या उड़नतश्तरी का अस्तित्व साबित नहीं हो पाया है। और शोध की जरूरत इन शैलचित्रों ने शोध की नई और व्यापक सम्भावनाओं को जन्म दिया है। इनका मिलान विश्व के अनेक स्थानों पर मिले शैलचित्रों से भी किया जाएगा। खान का अनुमान है कि दूसरे ग्रहों के प्राणियों का नर्मदाघाटी के प्रागैतिहासिक मानव से कुछ न कुछ संबंध जरूर रहा है। यह संबंध किस प्रकार का था इस पर शोध जारी है। पुरासम्पदा का खजाना कुछ दशक पूर्व जियोलॉजिस्ट डॉ. अरूण सोनकिया ने नर्मदाघाटी के हथनौरा गांव से अति प्राचीन मानव कपाल खोजा था। उसकी कार्बन आयु वैज्ञानिकों ने साढ़े तीन लाख वर्ष बताई है। नर्मदाघाटी का क्षेत्र कई पुरासम्पदाओं का खजाना माना जाता है।
नर्मदाघाटी के प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन से करीब 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के शैलाश्रयों में मिले प्राचीन शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी "एलियन" आए होंगे।
संस्था का मानना है कि आदि मानव ने इन शैलचित्रों में उड़नतश्तरी की तस्वीर भी उकेरी है। पत्थर पर दर्ज आकृति नर्मदा घाटी में नए प्रागैतिहासिक स्थलों की खोज में जुटी सिड्रा आर्कियोलाजिकल एन्वॉयरन्मेंट रिसर्च , ट्राइब वेलफेयर सोसाइटी के पुरातत्वविद् मोहम्मद वसीम खान के अनुसार ये शैलचित्र रायसेन जिले के भरतीपुर, घना के आदिवासी गांव के आसपास की पहाडियों में मिले हैं।
इनमें से एक शैलचित्र में उड़नतश्तरी (यूएफओ) का चित्र देखा जा सकता है। इसके पास ही एक आकृति दिखाई देती है, जिसका सिर एलियन जैसा है। यह आकृति खड़ी है। जैसा देखा, वैसा बनाया संस्था के अनुसार प्रागैतिहासिक मानव अपने आस-पास नजर आने वाली चीजों को ही पहाड़ों की गुफाओं, कंदराओं में पत्थरों पर उकेरते थे। ऎसे में सम्भव है कि उन्होंने एलियन और उड़नतश्तरी को देखा हो।
देखने के बाद ही उन्होंने इनके चित्र बनाए होंगे। रायसेन के पास मिले शैलचित्र आदिमानव के तत्कालीन जीवन शैली से भी मेल नहीं खाते। खान के अनुसार कुछ इसी तरह के चित्र भीम बैठका और रायसेन के फुलतरी गांव की घाटी में भी मिले हैं। सबसे बड़ा रहस्य दूसरे ग्रहों पर भी जीव होने के अनुमान के आधार पर दुनियाभर में एलियन के अस्तित्व पर शोध हो रहे हैं। विभिन्न देशों में कई बार दूसरे ग्रहों से आने वाली उड़नतश्तरी ( अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) देखे जाने के दावे किए जाते रहे हैं।
इसके अलावा, कई बार एलियन को भी देखे जाने के दावे किए जाते रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिक तौर पर अब तक एलियन या उड़नतश्तरी का अस्तित्व साबित नहीं हो पाया है। और शोध की जरूरत इन शैलचित्रों ने शोध की नई और व्यापक सम्भावनाओं को जन्म दिया है। इनका मिलान विश्व के अनेक स्थानों पर मिले शैलचित्रों से भी किया जाएगा। खान का अनुमान है कि दूसरे ग्रहों के प्राणियों का नर्मदाघाटी के प्रागैतिहासिक मानव से कुछ न कुछ संबंध जरूर रहा है। यह संबंध किस प्रकार का था इस पर शोध जारी है। पुरासम्पदा का खजाना कुछ दशक पूर्व जियोलॉजिस्ट डॉ. अरूण सोनकिया ने नर्मदाघाटी के हथनौरा गांव से अति प्राचीन मानव कपाल खोजा था। उसकी कार्बन आयु वैज्ञानिकों ने साढ़े तीन लाख वर्ष बताई है। नर्मदाघाटी का क्षेत्र कई पुरासम्पदाओं का खजाना माना जाता है।
Aliens and Narmada river
जब ऐसा होगा एलियंस बात करेंगी
एलियंस से बात करने के लिए धरती
Sep 27, 2010 नई दिल्ली।
एलियंस के किस्से लोंगो ने सुने और फिल्मों में देखें हैं। लेकिन हकीकत में अब तक एलियंस की मौजूदगी का कोई सबूत नहीं है। हालांकि कई वैज्ञानिक मानते हैं कि एलियंस का वजूद है और वो आज नहीं तो कल धरती पर आएंगे। जब वो आएंगे तो उनसे मलेशिया की वैज्ञानि क मजलान ओथमान बात करेंगी , क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें धरती का एलियंस एंबेसडर चुना है। 58 साल की एस्ट्रोफिजिशिस् ट ओथमान संयुक्त राष्ट्र के सहयोगी संगठन यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर ऑउटर स्पेस अफेयर्स की प्रमुख हैं।
उनका कहना है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक और संस्थान दूसरी दुनिया के लोगों की तलाश में जुटे हैं और उम्मीद है कि एक दिन ऐसा होगा जब हमें दूसरी दुनिया से कोई संकेत मिलेगा। जब ऐसा होगा, उस दिन के लिए हमें अपनी तैयारी करके रखनी होगी। ओथमान इससे पहले मलेशिया के नेशनल स्पेस एजेंसी की मुखिया थी और अंतरिक्ष में जाने वाली मलेशिया की पहली महिला हैं। दुनिया के कई वैज्ञानिक एलियंस के होने और उनके धरती तक पहुंचने की कल्पना कर चुके हैं। इस दौर के सबसे बड़े वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग भी मानते हैं कि एलियंस हैं और धरती पर आ सकते हैं।
हॉकिंग का कहना है कि मेरे दिमाग की गणनाएं बताती हैं कि एलियंस हैं लेकिन असल चुनौती ये जानने की है कि एलियंस दिखते कैसे हैं। जहां तक मेरा मानना है कि अगर कभी एलियंस धरती पर आए तो उनका बर्ताव इतना दोस्ताना नहीं होगा जितनी कि उम्मी द है। हॉकिंग का कहना है कि ज्यादातर एलियंस या तो माइक्रोब्स की तरह या फिर बेहद छोटे जानवरों जैसे हो सकते हैं। हॉकिंग ये चेतावनी देते हैं कि धरती के वैज्ञानिकों को दिमा गदार एलियंस से संपर्क करने से बचना होगा क्योंकि वो धरती को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कई सालों की रिसर्च और पड़ताल के बाद वैज्ञानिक ये तो मानते हैं कि एलियंस हो सकते हैं लेकिन पुख्ता तौर पर उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। वैज्ञानिक को कहना है कि एलियंस हमसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन संपर्क नहीं हो पा रहा है। एलियंस धरती पर इंसान से संपर्क स्थापित करने के लिए दशकों से 'कॉस्मिक ट्वीट्स' भेज रहे हैं। 15 अगस्त 1977 को ओहियो स्थित एक दूरबीन ने 72 सेकंड का एक महत्वपूर्ण संकेत पकड़ा था। ये संकेत अंतरिक्ष के एक खाली हिस्से से ठीक उसी फ्रीक्वेंसी पर आया था जिस पर वैज्ञानिक एलियंस से संदेश मिलने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन आज तक इस संकेत का मतलब नहीं निकाला जा सका। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि एलियंस इंसानों के मुकाबले ज्यादा बुद्धिमान हैं और तकनीकी तौर पर बेहद ताकतवर भी हैं। स्पेन और अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि एलियंस अपनी ताकतवर दूसबीनों से पृथ्वी पर नजर रख रहे हैं।
उन्हें पृथ्वी के घूमने की गति , दिन की लंबाई, मौसम चक्र, महासागरों, महाद्वीपों और बादलों की जानकारी हैँ। तमाम रिसर्च और अध्ययन के बाद भी दुनिया भर के वैज्ञानिक ये तक नहीं पता लगा पाए कि ब्रह्मांड में पृथ्वी के अलावा कहीं और जीवन है या नहीं। एलियंस का वजूद साबित करने के लिए अब तक हजारों दावे किए जा चुके हैं , लेकिन सच सही है कि आज तक एलियन तो दूर , कोई यूएफओ तक किसी के हाथ नहीं लगा है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि एलियंस पूरी तौर पर इंसान दिमाग की कल्पना है और इसमें कोई हकीकत नहीं है। हालांकि कई बड़े वैज्ञानिक इसे खारिज करते हैं। उनका कहना है कि अंतरिक्ष में होने वाली कई गतिविधियां दूसरी दु निया के वजूद को साबित करती हैं। कुल मिलाकर कहें तो एलियंस की मौजूदगी तब तक सवालों के घेरे में है जब तक वो पूरी तौर पर दुनिया के सामने नहीं आते।
Sep 27, 2010 नई दिल्ली।
एलियंस के किस्से लोंगो ने सुने और फिल्मों में देखें हैं। लेकिन हकीकत में अब तक एलियंस की मौजूदगी का कोई सबूत नहीं है। हालांकि कई वैज्ञानिक मानते हैं कि एलियंस का वजूद है और वो आज नहीं तो कल धरती पर आएंगे। जब वो आएंगे तो उनसे मलेशिया की वैज्ञानि क मजलान ओथमान बात करेंगी , क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें धरती का एलियंस एंबेसडर चुना है। 58 साल की एस्ट्रोफिजिशिस् ट ओथमान संयुक्त राष्ट्र के सहयोगी संगठन यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर ऑउटर स्पेस अफेयर्स की प्रमुख हैं।
उनका कहना है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक और संस्थान दूसरी दुनिया के लोगों की तलाश में जुटे हैं और उम्मीद है कि एक दिन ऐसा होगा जब हमें दूसरी दुनिया से कोई संकेत मिलेगा। जब ऐसा होगा, उस दिन के लिए हमें अपनी तैयारी करके रखनी होगी। ओथमान इससे पहले मलेशिया के नेशनल स्पेस एजेंसी की मुखिया थी और अंतरिक्ष में जाने वाली मलेशिया की पहली महिला हैं। दुनिया के कई वैज्ञानिक एलियंस के होने और उनके धरती तक पहुंचने की कल्पना कर चुके हैं। इस दौर के सबसे बड़े वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग भी मानते हैं कि एलियंस हैं और धरती पर आ सकते हैं।
हॉकिंग का कहना है कि मेरे दिमाग की गणनाएं बताती हैं कि एलियंस हैं लेकिन असल चुनौती ये जानने की है कि एलियंस दिखते कैसे हैं। जहां तक मेरा मानना है कि अगर कभी एलियंस धरती पर आए तो उनका बर्ताव इतना दोस्ताना नहीं होगा जितनी कि उम्मी द है। हॉकिंग का कहना है कि ज्यादातर एलियंस या तो माइक्रोब्स की तरह या फिर बेहद छोटे जानवरों जैसे हो सकते हैं। हॉकिंग ये चेतावनी देते हैं कि धरती के वैज्ञानिकों को दिमा गदार एलियंस से संपर्क करने से बचना होगा क्योंकि वो धरती को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कई सालों की रिसर्च और पड़ताल के बाद वैज्ञानिक ये तो मानते हैं कि एलियंस हो सकते हैं लेकिन पुख्ता तौर पर उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। वैज्ञानिक को कहना है कि एलियंस हमसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन संपर्क नहीं हो पा रहा है। एलियंस धरती पर इंसान से संपर्क स्थापित करने के लिए दशकों से 'कॉस्मिक ट्वीट्स' भेज रहे हैं। 15 अगस्त 1977 को ओहियो स्थित एक दूरबीन ने 72 सेकंड का एक महत्वपूर्ण संकेत पकड़ा था। ये संकेत अंतरिक्ष के एक खाली हिस्से से ठीक उसी फ्रीक्वेंसी पर आया था जिस पर वैज्ञानिक एलियंस से संदेश मिलने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन आज तक इस संकेत का मतलब नहीं निकाला जा सका। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि एलियंस इंसानों के मुकाबले ज्यादा बुद्धिमान हैं और तकनीकी तौर पर बेहद ताकतवर भी हैं। स्पेन और अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि एलियंस अपनी ताकतवर दूसबीनों से पृथ्वी पर नजर रख रहे हैं।
उन्हें पृथ्वी के घूमने की गति , दिन की लंबाई, मौसम चक्र, महासागरों, महाद्वीपों और बादलों की जानकारी हैँ। तमाम रिसर्च और अध्ययन के बाद भी दुनिया भर के वैज्ञानिक ये तक नहीं पता लगा पाए कि ब्रह्मांड में पृथ्वी के अलावा कहीं और जीवन है या नहीं। एलियंस का वजूद साबित करने के लिए अब तक हजारों दावे किए जा चुके हैं , लेकिन सच सही है कि आज तक एलियन तो दूर , कोई यूएफओ तक किसी के हाथ नहीं लगा है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि एलियंस पूरी तौर पर इंसान दिमाग की कल्पना है और इसमें कोई हकीकत नहीं है। हालांकि कई बड़े वैज्ञानिक इसे खारिज करते हैं। उनका कहना है कि अंतरिक्ष में होने वाली कई गतिविधियां दूसरी दु निया के वजूद को साबित करती हैं। कुल मिलाकर कहें तो एलियंस की मौजूदगी तब तक सवालों के घेरे में है जब तक वो पूरी तौर पर दुनिया के सामने नहीं आते।
Who will talk with Aliens?
एलियंस और कुछ अनसुलझी पहेलियाँ
एलियंस और कुछ अनसुलझी पहेलियाँ
अमेरिका सेटी यानी search for extra tairistril intelizens जैसे स्वायत समूह संगठनों की मदद से गत कई वर्षो से एलियंस की खोज मे लगे हैँ उनका कहना है की जूपिटर के बर्फ से ढके उपग्रह यूरोप को ध्यान मे रखकर कहा जा सकता है कि ज्यादातर ग्रहोँ पर जीवन साधारण जीवोँ के रूप मे होगा हो सकता है कि कुछ ग्रहोँ पर जीव हमसे बुद्धिमान हो और अपने संसाधनोँ का यूज कर चुके हो ऐसे मे ये माना छा सकता है कि वे धरती जैसे किसी ग्रह की तलाश मे होंगे अगर उन्हेँ पता चलता है तो वे हम पर हमला कर सकते है
अमेरिका सेटी यानी search for extra tairistril intelizens जैसे स्वायत समूह संगठनों की मदद से गत कई वर्षो से एलियंस की खोज मे लगे हैँ उनका कहना है की जूपिटर के बर्फ से ढके उपग्रह यूरोप को ध्यान मे रखकर कहा जा सकता है कि ज्यादातर ग्रहोँ पर जीवन साधारण जीवोँ के रूप मे होगा हो सकता है कि कुछ ग्रहोँ पर जीव हमसे बुद्धिमान हो और अपने संसाधनोँ का यूज कर चुके हो ऐसे मे ये माना छा सकता है कि वे धरती जैसे किसी ग्रह की तलाश मे होंगे अगर उन्हेँ पता चलता है तो वे हम पर हमला कर सकते है
Aliens our usse judi pheliya
एलियंस संबंधी रहस्य, सावधान और चेतावनी
सावधान हो जाओ !!!
महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग की हालिया चेतावनी कि मानव जाति को एलियंस या किसी अन्य ग्रहवासियों से दूर ही रहना चाहिए, अपने आप में वैज्ञानिक जगत में एक विचारणीय पहेली के तौर पर गूंज गई है। हॉकिंग के विचारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी सच है कि मनुष्य हमेशा से ही अज्ञात की खोज करना अपना अधिकार समझता आया है।
तमाम वैज्ञानिक खोजें इसी कौतुहल के गर्भ से निकल कर सामने आई हैं, इसलिए उसे रोका तो कतई नहीं जा सकता। उड़नतश्तरियों के जब-तब सुनाई देने वाले किस्से, इसी कौतुहल की एक कड़ी रहे हैं और एलियंस की खोज में होने वाले खर्च और उनकी कपोल कल्पित जीवन पर बनी फिल्में भी इसी कौतुहल का हिस्सा रही हैं, जिन्हें लोग असलियत से जोड़ बैठते हैं। आज पढ़िए एलियंस संबंधी रहस्यों के बारे में मशहूर भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने यह कहकर कि सुदूर अंतरिक्ष में एलियंस जरूर हैं।
हॉकिंग ने चेतावनी दी है कि हमें एलियंस को खोजने के बजाए उनसे दूर ही रहना चाहिए। धरती के लिए यही सही होगा। क्या है धारणा का आधार: हॉकिंग का तर्क है कि ब्रह्मांड में खरबों आकाशगंगाएं हैं और हर आकाशगंगा में करोड़ों तारे, ग्रह और उपग्रह हैं। ऐसे में केवल पृथ्वी पर ही जीवन है, यह कहना सही नहीं होगा। जीवन किसी उपग्रह या ग्रह कहीं भी हो सकता है। धरती पर ही सबूत मिल चुके हैं कि जीवन उबलते पानी और जमी हुई बर्फ में भी हो सकता है।
हॉकिंग कहते हैं कि असल चुनौती यह जानना है कि एलियंस दिखते कैसे हैं? अमेरिका सेटी यानी सर्च फॉर एक्स्ट्रा टैरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस जैसे स्वायत्त सामूहिक संगठनों की मदद से गत कई वर्षो से एलियंस की खोज में लगा है। उन्होंने कहा कि जूपिटर के बर्फ से ढके उपग्रह यूरोपा को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि ज्यादातर ग्रहों पर जीवन साधारण जीवों के रूप में होगा। हो सकता है कि कुछ ग्रहों पर जीव हमसे बुद्धिमान हो। अगर ऐसा है तो वो अपने स्रोतों का उपयोग भी कर चुके होंगे। ऐसे में इस बात को माना जा सकता है कि वे धरती जैसे किसी ग्रह की खोज में लगे होंगे। और हां, अगर उन्हें पता चलता है तो इस पर कब्जे के लिए हमला बोल देंगे। हॉकिंग का कहना है कि एलियंस तारों के बीच भी हो सकते हैं या हो सकता है कि वे स्पेस में घूम रहे हो
महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग की हालिया चेतावनी कि मानव जाति को एलियंस या किसी अन्य ग्रहवासियों से दूर ही रहना चाहिए, अपने आप में वैज्ञानिक जगत में एक विचारणीय पहेली के तौर पर गूंज गई है। हॉकिंग के विचारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी सच है कि मनुष्य हमेशा से ही अज्ञात की खोज करना अपना अधिकार समझता आया है।
तमाम वैज्ञानिक खोजें इसी कौतुहल के गर्भ से निकल कर सामने आई हैं, इसलिए उसे रोका तो कतई नहीं जा सकता। उड़नतश्तरियों के जब-तब सुनाई देने वाले किस्से, इसी कौतुहल की एक कड़ी रहे हैं और एलियंस की खोज में होने वाले खर्च और उनकी कपोल कल्पित जीवन पर बनी फिल्में भी इसी कौतुहल का हिस्सा रही हैं, जिन्हें लोग असलियत से जोड़ बैठते हैं। आज पढ़िए एलियंस संबंधी रहस्यों के बारे में मशहूर भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने यह कहकर कि सुदूर अंतरिक्ष में एलियंस जरूर हैं।
हॉकिंग ने चेतावनी दी है कि हमें एलियंस को खोजने के बजाए उनसे दूर ही रहना चाहिए। धरती के लिए यही सही होगा। क्या है धारणा का आधार: हॉकिंग का तर्क है कि ब्रह्मांड में खरबों आकाशगंगाएं हैं और हर आकाशगंगा में करोड़ों तारे, ग्रह और उपग्रह हैं। ऐसे में केवल पृथ्वी पर ही जीवन है, यह कहना सही नहीं होगा। जीवन किसी उपग्रह या ग्रह कहीं भी हो सकता है। धरती पर ही सबूत मिल चुके हैं कि जीवन उबलते पानी और जमी हुई बर्फ में भी हो सकता है।
हॉकिंग कहते हैं कि असल चुनौती यह जानना है कि एलियंस दिखते कैसे हैं? अमेरिका सेटी यानी सर्च फॉर एक्स्ट्रा टैरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस जैसे स्वायत्त सामूहिक संगठनों की मदद से गत कई वर्षो से एलियंस की खोज में लगा है। उन्होंने कहा कि जूपिटर के बर्फ से ढके उपग्रह यूरोपा को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि ज्यादातर ग्रहों पर जीवन साधारण जीवों के रूप में होगा। हो सकता है कि कुछ ग्रहों पर जीव हमसे बुद्धिमान हो। अगर ऐसा है तो वो अपने स्रोतों का उपयोग भी कर चुके होंगे। ऐसे में इस बात को माना जा सकता है कि वे धरती जैसे किसी ग्रह की खोज में लगे होंगे। और हां, अगर उन्हें पता चलता है तो इस पर कब्जे के लिए हमला बोल देंगे। हॉकिंग का कहना है कि एलियंस तारों के बीच भी हो सकते हैं या हो सकता है कि वे स्पेस में घूम रहे हो